मुझे क्रिकेट का शौक बचपन में ही लग गया था जब मैं टीवी पर यह गेम देखता था। यही वजह है कि लगभग 13 साल की उम्र से ही मैं क्रिकेट खेलने लगा था। क्रिकेट के प्रति मेरा पागलपन इतना था कि सुबह से शाम तक गली में टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलता रहता था। फिर अचानक ही मैंने क्रिकेटर बनने का सपना छोड़कर एक सेफ कॅरिअर ऑप्शन चुन लिया। ऐसा इसलिए कि मैं एज-ग्रुप क्रिकेट में कई बार रिजेक्ट हो गया था जिसकी वजह से मुझे लगा कि मैं क्रिकेट में अपना भविष्य नहीं बना सकूंगा। इस सोच के कारण मेरी क्रिकेट प्रैक्टिस कम होती चली गई। इसके बाद मैंने चेन्नई स्थित यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में पांच साल का डिग्री कोर्स किया। उस समय मुझे खेलने के लिए बहुत ही कम समय मिल पाता था। डिग्री के तुरंत बाद मैंने दो साल तक एक आर्किटेक्ट के तौर पर काम किया। इसी वजह से मैं कई सालों तक क्रिकेट से बिल्कुल दूर हो गया था।
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मुश्किल होता है पैशन से दूर रहना
आर्किटेक्चर के तौर पर काम करते हुए भी क्रिकेट का पैशन मेरे अंदर खत्म नहीं हुआ था। दरअसल जॉब में अच्छा पैसा कमाकर भी मुझे कोई उपलब्धि जैसा महसूस नहीं हो रहा था। एक तरह की संतुष्टि जो मुझे लोअर-डिविजन खेल खेलकर और सिर्फ नेट में बॉलिंग करते हुए भी मिल जाती थी, वह जॉब में नहीं थी। इसी वजह से मैंने जॉब छोड़कर एक ऑलराउंडर खिलाड़ी के तौर पर एक क्रिकेट क्लब जॉइन कर लिया। हालांकि सात साल के गैप और उम्र अधिक होने की वजह से मुझे काफी परेशानियां उठानी पड़ीं, लेकिन मैंने अपने कोच को यह विश्वास दिलाया कि मैं हर दिन तीन घंटे बॉलिंग करुंगा औऱ् इसके लिए मैं फीस देने के लिए भी तैयार था।
घुटने की चोट ने बदल दिया खेल
क्लब में खेलने के दौरान घुटने की चोट की वजह से मुझे अपना खेल बदलना पड़ा। छह महीने के अंतराल के बाद जब मैं वापस क्लब गया, तो मेरी परेशानी को देखते हुए कोच ने मुझे स्पिनर बनने को कहा। इस तरह फास्ट बॉलर से मैं एक स्पिनर बन गया। मेरे दोस्तों और कोच ने मेरी स्पिनिंग की तारीफ की जिससे कि मेरा विश्वास और लगन दोनों बढ़ती रही। मैंने अपनी स्किल्स को डेवलप किया, साथ ही उतार-चढ़ावों पर भी काफी काम किया। घुटने की चोट की वजह से न केवल मेरा खेल बदला, बल्कि मैं एक आलराउंडर से स्पिनर भी बन गया।
सफलता में होती है सबकी भागीदारी
सफलता किसी भी अकेले व्यक्ति की सफलता नहीं होती है, उसमें उसके परिवार और दोस्ताें का साथ बहुत महत्वपूर्ण होता है। मेरे पेरेंट्स ने कभी-भी मेरे फैसलों का विरोध नहीं किया। यही वजह थी कि मैं अपने निर्णय ले सका। हालांकि सात साल के गैप के बाद लौटकर सीरियस गेम खेलने में बहुत मेहनत करने की जरूरत थी, लेकिन मैं तैयार था। मैं मेहनत करना चाहता था। हाल ही में आईपीएल में बड़ा रिवाॅर्ड अौर जाे पहचान मुझे आैर मेरे खेल को मिली है, उसने मेहनत पर मेरे भरोसे को और बढ़ा दिया है।
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